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Sunday, October 11, 2015

प्रकृति धर्म और प्रकृति संस्कृति


जीवन की समस्याओ का हल प्रकृति के असीमित संसाधनों में खोजा जा सकता है। सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में विद्यमान असंख्य पदार्थ प्राकृतिक संसाधनो को समृद्धिशाली बना रहै है, इनमें कभी कोई कमी नहीं आने वाली, यदि इनके उपयोग को सहज एंव सात्विक बनाया जाये, क्योंकि प्रकृति की चमत्कारी शक्ति का दुरूपयोग करने पर अनेक बार संकट प्रकट हुये। इसलिए प्रकृति की महान कृति मानव को उसके प्रति समर्पित होना पड़ेगा, तभी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। प्रकृति को जननी मानकर सभी धारणाओं में परिमार्जन हो और ऐसी अवधारणाओं को त्यागना चाहिये जो प्रकृति के सिद्धांतो के विपरीत हो। प्रकृति की गोद हमारी माता की गोद की तरह सुरक्षित तथा आनंददायक है, इसके ममत्व का सुख उठाया जाए। इसका मौन प्रेम संसार की शांति का उद्रम है। प्रकृति के वात्साल्य को हम अनुभव नहीं कर पाते। पहाड़ों और समुद्रो में बहुतेरे यौगिक पदार्थ भरे पड़े है, जिनसे जीवन के संतापों को दूर किया जा रहा है। शारीरिक और स्नेहिल आंचल। इसी भू लोक में अमृत और विष दोनेा विद्यमान हैं। यही पर सब दुखों का समाधान उपस्थित है। प्रकृति के वरदानों से मानवता को धन्य किया जा सकता है, इसके लिये उत्कृष्ठ इच्छाशक्ति अनिवार्य है।
अज्ञानतावश लोग प्रकृति के सानिध्य से हट जाते है और कालांतर में दुखों के भागी बनते है। प्रकृति के महाभंण्डार मेंअनेक औषधीय शक्तियां है, जो रोग को शांत करने में सक्षम ह ै। प्रकृति को माता समझकर उनके यौगिक पदार्थो की खोज, शोधन या उपभोग की बात सोचनी चाहिये। प्रकृति का स्वरूप परमेश्वर की परमशक्ति का भौतिक आचरण है। इस भौतिक रूप के पीछे एक रहस्य छिपा है अधिभौतिक बीज का रहस्य। मन, चित, हृदय वेदना के हर स्पंदन में प्रकृति शक्ति फड़ापेन का दर्शन सुलभ रहना चाहिये।
यंहा के आदिवासियों/मुलनिवासियों का योग , परमयोग है।
पर्यावरण के साथ हमारा संबंध हमारे अनुभव की सर्वप्रथम और सब से महत्वपूर्ण परत है। अगर हमारा पर्यावरण स्वच्छ और सकरात्मक है तो हमारे अनुभव की बाकी सभी परतों पर इसका सकरात्मक प्रभाव पड़ता है, और वे संतुलित हो जाती हैं और हम अपने और अपने जीवन में आये व्यक्तियों के साथ अधिक शांति और जुड़ाव महसूस करते हैं। मनुष्य की मानसिकता के साथ पर्यावरण का एक नजदीकी रिश्ता है। प्राचीन समय की सभ्यताओं में प्रकृति को सम्मान के भाव से देखा गया है - पहाड़, नदियां, वृक्ष, सूर्य, चँद्र, पवन, अग्नि जब हम प्रकृति और अपनी आत्मा के साथ अपने संबंध से दूर जाने लगते हैं, तब हम पर्यावरण को प्रदूषित करने लगते हैं और पर्यावरण का नाश करने लगते हैं। हमे उस प्राचीन व्यवस्था को पुनर्जीवित करना होगा जिससे की प्रकृति के साथ हमारा संबध सुदृढ़ बनता है।
विश्व में गोंड़ी धर्म/प्रकृति धर्म ही प्रकृति सम्मत है, जो प्रकृति के अनुसार ही अपने संस्कार संचालित करते है, समाज के जिन विद्वानों ने प्रकृति के सम्मत जो कृति बनाई है उसे ही हम प्रकृति संस्कृति कहते है, देश में हम विभिन्न नामो से जानते है, जैसे गोंड़ी धर्म, सरना धर्म, प्रकृति धर्म, आदि धर्म विश्व में विख्यात जितने भी धर्म संचालित है, उन धर्मो को इस देश में जन्में विद्वानों ने बनाया है, सभी धर्मो का हम इतिहास में पढ़ते है, कि इतने ईषापूर्व इस धर्म की शुरूआत हुई लेकिन प्रकृति धर्म की शुरूआत प्रकृति के निर्माण से शुरूआत हुई है।

बाकी अगले अंक में ----- आपका हरी सिह मरावी




**कोया(गोंडी धर्म) प्रकृति धर्म ***

**कोया(गोंडी धर्म) प्रकृति धर्म ***
कली कंकाली अर्थात जंगो रायतार माता के आश्रम के बारह पुत्र कालांतर में कोया पुनेम के आदि धर्म गुरु पहांदीपारी कुपार लिंगों के शिष्य बने. उनका देव सगा गोत्र विभाजन की प्रक्रिया ऐसा रहा- सावरी (सेमर) वृक्ष के पत्तियों के गुट समूहानुसार और सूर्य माला के ग्रहों की रचनाधार पर क्रमशः उन्दाम, चिन्दाम, कोन्दाम, नाल्वेन, सैवेन, सार्वेन, येर्वेन, अर्वेन, नर्वेन, पदवेन, पार्वूद और पार्र्ड किया. प्रथम सात देव-सगा धारकों में सात सौ (७००) कुल गोत्र नाम है, कोआकाशी, शेंदरी, जामूनी, नीला, हरा, पीला, और लाल रंग का वस्त्र दिया और शेष पांच सगाओं (भूमक शाखा सगा) के केवल पचास (५०) कुल गोत्र नाम है, को सूर्य प्रकाशी (पुरवा तिरेपी) अर्थात सफेद रंग का वस्त्र दिया. अपने सभी शिष्यों को धर्म गुरु पारी कुपार लिंगों ने सगा-गोंगो बाना से सुसज्जित कर गोंएन्दाडी (गोंएंडी, गोंडी) भाषा में कोया पुनेम ज्ञान की दिव्य ज्योति दी. वे ही मूल मानव-समाज कालांतर में कोयावंशीय सगा-जगत के कुल-देवताएं अर्थात मूल पुरुष कहलाये. वंशोत्पत्ति के लिए स्त्री सत्व भी आवश्यक तत्व है, जो विज्ञान सम्मत महत्वपूर्ण ज्ञान तथ्य है, इसलिए कोयतूर-जगत में बारह कुल-देवियाँ अर्थात मूल स्त्री सत्व को भी कुल-देवता ही कहा गया, यही कुल देवी देवताएं ही आज कोयतूर-जगत में व्याप्त मूल चौबीस कुल-देवताओं की बहुप्रशंसित तथ्यपूर्ण संख्या रहा और है. कोयावंशीय मानव जगत में, जब कोया-पुनेमी प्रचार-प्रसार का कार्य सम्पन्न हो चुका, इसके अलावा सगा-संबंध प्रस्थापित प्रक्रिया में कठिनाईयां उत्पन्न होने लगी तब कोयतूर जगत में व्दितीय पुनेम मुठवाशय लिंगों (रावेण पोन्याल) ने कालांतर में बारह मूलसगा देवी (जंगो रायतार माता शाखा के एक, दो और तीन देव. आदि धर्म गुरु कुपार लिंगों शाखा के चार, पांच, छ:, सात देव. इन सात सगा देवों के भुमक शाखा के आठ, नौ, दस, ग्यारह और बारह देव) को सामाजिक और धार्मिक दर्शन में सगा समायोजन की विलीनीकरण के महत्वपूर्ण प्रक्रिया को, आदि धर्म गुरु पहांदीपारी कुपार लिंगों से मूल-सिद्धांत सम और विषम देव-संख्या के भावना के अन्तर्गत संपन्न किया, जिसमे उन्होंने धर्म गुरु कुपार लिंगों शाखा के मूल चार कुल सगा देवताओं को हरेक सगा देवता के साथ सगा समायोजन प्रक्रिया को सम्पन्न किये, जिसमे एक सगा देव भूमक शाखा से और दूसरा सगा देव जंगो रायतार माता शाखा से लिया गया जो मूल सात सौ पचास (७५०) कुल गोत्र नामों में सगा समायोजन की प्रक्रिया निम्नांकित है :-
1. एक देव सगाधारी गौत्र - 100 - गौत्र
2. दो देव सगाधारी गौत्र - 100 - गौत्र
3. तीन देव सगाधारी गौत्र - 100 - गौत्र
4. चार देव सगाधारी गौत्र - 100 - गौत्र
5. पांच देव सगाधारी गौत्र - 100 - गौत्र
6. छः देव सगाधारी गौत्र - 100 - गौत्र
7. सात देव सगाधारी गौत्र - 100 - गौत्र
8. आठ देव से बारह गौत्र हमारे भुमका सगाधारी गौत्र - 10+10+10+10+10 = 50 गोत्र

कुल योग = ७५०
गोंडवाना भूखंड में मूलनिवासी गोंडी-भाषिक धरती-पुत्रों को अपने गोंडी-जगत में, गुरु-कृपा ने आदि-काल से ही हमारे सगा समाजिक संरचना में, इस अदभुत दिव्य ज्ञान-शक्ति गोंडी तत्वज्ञान में फड़ापेन शक्ति का दर्शन, गोंडवाना कुल-देवता की सैद्धांतिक मान्यता पर आधारित हमारे चौबीस मूल वंशोत्पादक कुल-देवता का दर्शन, सगा देव धारकों के कुल-गोत्र नाम और कुल गोत्र चिन्ह का दर्शन, सगा देव बाना अर्थात सगा धर्म ध्वज का दर्शन, सम-विसम सगा-गोत्र और कुल चिन्ह के सगा-शाखाओं में ही वैवाहिक संबंध प्रस्थापित करने का दर्शन, सम-विसम गोत्र नाम और सम-विसम कुल चिन्ह से धारकों के माध्यम से ही प्रकृति-संतुलन करने का दर्शन, इत्यादि इस मौलिक गोंडी तत्वज्ञान को गुरु-शिष्य परम्परानुसार ही, इस दर्शन को व्यव्हारिक रूप से व्यवस्थापित किया था और है. गोंडी लोक साहित्य में बिखरे अनमोल मोती, जो आज उसकी स्पष्ट पुष्टि करती है और सगा-जगत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विचारणीय तथ्य चार संभाग के भूखण्ड, चार वंश के मानव, चार गोंडी तत्वज्ञान के महामानव धर्म गुरु, बारह मूल सगा देवों के समायोजन प्रक्रिया के उपरान्त (प्रकियोपरांत) कालान्तर में चार मूल सगा देव शाखाओं की मान्यता, इत्यादि मौलिक तत्व भी आज उपलब्ध करती है. गोंडी तत्वज्ञान और तथ्य से भली भांति सगा-जगत आज पुनर्परिचित हो गये ही होंगे, ऐसा हमारी समझ है. चार अंक संख्या की यह बहुचर्चित और सोचनीय तथ्यात्मक प्रशंग है जो निसंदेह आज सगा–जगत के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न-चिन्ह होगी. क्योंकि बारह मूल सगा देवों की समायोजन प्रक्रिया के कालान्तर में उभरी, यह हमारे मूल कुल देवताओं की बहू प्रशंसित चौबीस संख्या की ही सिर्फ गणनात्मक मान्यताओं का सूचक-संख्या रही होगी और है.!
 धर्म गुरु कुपार लिंगों शाखा के मूल चार, पांच, छ: और सात सगा देवों की अंक संख्या को जोड़े तो सिर्फ बाईस-सगा देवों की संख्या हमे मिलती है. उसमे हमारे अन्य आठ मूल सगा-देव शाखाएं भी मूल गोंडी सिद्धांतिक प्रक्रिया के तहत सम्मिलित की गई है. इसके अलावा आदि धर्म गुरु पारी लिंगों और आदि क्रांति देवी जंगों रायतार माता को भी जोड़े तो हमे जो संख्या मिलेगी वह हमारे चौबीस मूल सगा देवों की गणनात्मक संख्या का सूचक चिन्ह होगा, परन्तु विश्व-निर्माण में हमारे गोंडवाना-जगत की इस महत्वपूर्ण बहु-प्रशंसिय चौबीस मूल वंशोत्पादक कुल-देवताओं के योगदान को दुनिया नकार नहीं सकती. !
(इसी संदर्भ में कोयतूर सगा-जगत के चिंतन और सोधक् मान्यवर ऋषि मसराम ने भी अपने शोध-लेख में जानकारी भी दी है, कि कोयतूर धर्म जगत में आदिम समाज के आधदेव लिंगों और जंगो रायतार, इनसे चार शाखाएं निर्मित हुई. १. राजा कोलासुर (काली) २. सेनापति-मायको सुगाल ३. तत्ववेत्ता-होरा जोती ४. देवदूत-तुरपोऊ-याल (महाकाली) इन चारो को ४, ५, ६, ७, देवों को २२ देव बनाया गया. इस संदर्भ में चार कुल सगा देवों के २२ देव आध देवता लिंगों और जंगो, यही हमारे २४ देवताओं की संख्या है. इसकी मूल देवताओं को वंश में ही हमारे सम्पूर्ण गोंडवाना-जगत निहित है.
इस संदर्भ में प्रोफेसर चौहान ‘भारतीय शूर वन्य जमात गोंड’ में लिखते हैं, उसे भी हमे गोंडी तर्क-कसौटी में कसना होगा. प्रकृति शक्ति बड़ादेव ने इस सृष्टि का निर्माण किया है, बारह प्रकृति पुत्र गोंड देवताओं ने इस सृष्टि का निर्माण किया है. गोंड बारह देवताओं का धार्मिक रूप व व्यवहार आज भी पुरानी रीति से है. इसके देवता भी प्रथक हैं. इनका देवता बूढ़ादेव है, जिसमे बड़ादेव भी समाहित हैं, जो सभी देवी की सहयोग से बना है. बूढ़ादेव समूह से बना होगा ऐसा भी लोग बताते हैं. कुछ भी हो तो भी गोंड लोगों के विश्व-निर्माण में चौबीस देवताओं का विशिष्ट महत्व है. इसलिए कोयतूर-जगत के धार्मिक, सामाजिक और व्यवहारिक जीवन-मूल्यों की मौलिकता को समझें तभी हम कोयतुर-जगत को करीब से समझ सकेगें अन्यथा नही. इसी संदर्भ में हम एक और प्रसिद्ध गोंडी साहित्यकार मान्यवर लिखारी सिंह वट्टी के लेख ‘गोंडी संस्कृति का प्रतीत अशोक चक्र’ का प्रसंगांश भी उल्लेख करते हैं. हमे उनके विवेचनात्मक तथ्यों पर विशेष ध्यान देना होगा. कोया वंश चक्र में धम्म-चक्र का स्वरूप स्वयं ही स्पष्ट है. इसका पूर्व स्वरूप तथा विकसित संकल्प राजा अशोक ने अपने शिल्पकला में स्पष्ट किया है. जिसमे राजा अशोक ने सिंह मुद्रा शांति-चक्र का रहस्योदघाटन प्राचीन-काल में अनार्य गोंड कितने ही आर्यों के पूर्व से ही भारत में निवास कर रहे हैं. अशोक के चौबीस चक्र गोंड देवताओं के चौबीस बहुप्रशंसिय वंशोत्पादक याने बुद्ध धर्म में से चौबीस चक्र आभास होता है. यह भी अत्यंत सूचक तथा सोचनीय कल्पना है कि गौतम बुद्ध भी मुरीय गोंड थे, इसलिए गोंडी संस्कृति के संकेत तथा कल्पना उनके धर्म चक्र में मिलता है. आगे लिखते हैं कि धम्म-चक्र हिन्दू की कल्पना तथा पुराणों में कही गई बात ठीक नही है. धम्म-चक्र गोंडी-संस्कृति का शत प्रतिशत प्रतिबिम्ब है. मूल चक्र गोंडी संस्कृति की प्रतीक है. मूल स्त्रोत धम्म-चक्र का गोंगो संस्कृति ही है. हमारी भूल के कारण हिन्दू समाज के लोग, गुमराह करने के लिए नहीं चूकते कि धम्म चक्र हिन्दू का ही अंग है. अब हमे सजग होना होगा तथा स्पष्ट समझना होगा कि हमारा राष्ट्रीय चिन्ह धम्म चक्र (अशोक-चक्र) ही गोंडी संस्कृति का मूल स्त्रोत है.

सारांश यह है कि गोंडवाना-जगत की उत्पत्ति और हमारी सगा-समाजिक संरचना में हमारे मूल धार्मिक और व्यवहारिक जीवन मूल्यों में सदैव उन्नति हित रीति-नीति का सीधा संबंध मोटे तौर पर प्रकृति सदृश्य नियम की उस सृजन-प्रक्रिया (धरती-जगत की दिव्य-शक्ति, वनस्पति-जगत की दिव्य-शक्ति, जीव-जगत की दिव्य-शक्ति) में अंतर्नीहित शक्ति की दिव्य ज्योति का ही संक्षेप में हमारी यही एकात्मक गोंडी तत्वज्ञान और दर्शन की मौलिक कथावस्तु रहा और है, जो जंगम और स्थावर जीव-धारियों के लिये सर्वथा उन्नत एवं समृद्ध दिव्य शक्ति रहा है और है. वह गोंडवाना के गौरवशाली अतीत का सदैव एक स्वर्णिम पृष्ठ रहा और है. हम गोंडवाना-वासियों को उस दिव्य-ज्ञान पर गर्व रहा है और है. उसकी मौलिक ज्ञान और तथ्य आज विज्ञान सम्मत भी है. जिस युग में हम सिधु घाटी सभ्यता के धनी थे, उस काल में पश्चिम की आनेक् जातियां असभ्य एवं बर्बर जीवन व्यतीत किया करती थी. इस बात का भी हमे ध्यान रहे कि बहुत संभव है, इससे भी अधिक व प्राचीन अवशेष भारत की रलगर्भा भूमि के निचे दबे पड़े हो, इसलिए भी गोंडवाना में चहूँमुखी खोज की आज आवश्यकता जान पड़ती है, क्योंकि महत्वपूर्ण नवीन जानकरियां तभी हमे प्राप्त हो सकेगा. आज हमारे पास इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि किसी समय पृथ्वी का सम्पूर्ण भूखण्ड २X१० की घात ८ वर्ग किमी. (८ करोड़ वर्ग मील) के एक मात्र महाव्दीप के रूप में था. उस आदिमयुगीन महाव्दीप आज ‘पेंजिया’ के नाम से जाना जाता है. लगभग १९ करोड़ वर्ग जुरेसिक काल में यह दो विशाल महाव्दिप में बट गया और लारेशिया (यूरेशिया, ग्रीनलैंड, उतरी अमरीका तथा ‘गोंडवाना लैंड’ (आफ्रिका, अरब, भारत, दक्षिण अमरीका, ओरोनिया, अंटार्कटिका) नाम दिये गये. लगभग १२ करोड़ वर्ष पूर्व गोंडवाना लैंड भी दो भागों में विभक्त हो गया. आज के लगभग ४५ करोड़ वर्ष पूर्व अर्थात, आडोबिशियन-काल तक दक्षिणी ध्रूव संभवत: वहाँ था, जहां आज सहारा का मरुस्थल है.
जय सेवा ,
 जय बड़ादेव,
 जय जौहार
( from- gond community) thanks

Saturday, October 10, 2015

आरक्षण बचाओ और एम एस जी-2 पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने आदिवासी समाज की आमसभा एंव रैली

डिण्डौरी, गोंड जनजाति महासंघ एंव संयुक्त आदिवासी संगठनों की और से डिण्डौरी नगर में विरोध रैली निकाली गई जिसमें आदिवासी समाज की महिलाऐं,छात्र कर्मचारी अधिकारी जनप्रतिनिधि शामिल हुये, सर्वप्रथम चंद्रविजय काॅलेज प्रांगण से रैली निकाली गई रैली में गुरूमीत राम रहीम के पुतले की अर्थी निकाली गई जो नारे के साथ कलेक्टर चैराहा से वापस बसस्टैण्ड में आकर आमसभा में परिवर्तित हो गई, आमसभा में सर्वप्रथम जबलपुर से आये प्रवीणचंद्र गजभिये जी क्रातिकारी विचारक ने अपने उदबोधन मे कहा कि आदिवासी समाज का खून उबल नहीं रहा है। जिस राजा महाराजाओं ने आपके लिये अपने आप को बलिदान कर दिया, उस समाज को सोने की जरूरत नहीं है,उसे जागरूक होने की जरूरत है। जाग जाओ और राम रहीम जैसे लोगो को संवैधानिक रूप से सबक सिखाओं, गोंड जनजाति महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष धरम सिह मसराम,ने अपने उदबोधन में कहा कि हमारा समाज धीरे धीरे संवैधानिक रूप से जागरूक हो रहा है, मैसेन्जर आॅफ गाॅड- 2 फिल्म कुछ दिनों पूर्व भारत देश के अनेक राज्यों के सिनेमाघर एंव माॅल में प्रदर्शित की गई है, फिल्म के एक संवाद में आदिवासी समाज को इंसान नहीं जानवर से भी बदतर शैतान बताया गया है, उक्त संवाद फिल्म के मुख्य कलाकार गुरूमीत राम रहीम ने कहा है, उन पर  व केन्द्रिय फिल्म प्रमाणन बोर्ड अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण)1989 अधिनियम का संख्यांक 33 की धारा 3 (1)(10) के तहत एफ.आई.आर. पंजीबद्ध कर कार्यवाही की जावे। जी.एस.पूषाम जी ने कहा कि सब एक हो जाओं गोड, परधान, भरिया,बैगा, ढुलिया,अगरिया,कोल जितनी भी जनजातियां इस प्रदेश में रहती है, आज उनको एक होने की आवश्यकता है, एक होकर संेगठित होकर समाज में हो रहै, अन्याय अत्याचार शोषण के विरूद्ध संयुक्त रूप से आवाज उठायें।
शहपुरा में छात्रावास की घटित घटना पर उन्होने कहा कि अभी तक कार्यवाही का ना होना बड़े ही शर्म की बात है। इस विषय पर विधायक मरकाम ने कहा कि इस विषय को में विधानसभा में रखूंगा, आदिवासी अत्याचारों पर तुरंत कार्यवाही क्यों नही की जा रही है।  समाज में उपस्थित सभी अतिथियों ने आरक्षण, एम.एस.जी-2 फिल्म राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध एंव अन्याय अत्याचार शोषण पर अपनी बात कही।

अपनी रीति रिवाज पंरपराओं को जीवित रखे 
श्रीमति पुष्पा मरावी एंव श्रीमति नीतू तिलगाम ने कहा कि आरक्षण को बचाना है, तो अपनी पंरपरा, रीतिरिवाज, धर्म भाषा को बचाऐं और उनका पालन करें, पड़ोसी राज्य छत्तीगढ़ में जो जनजाति अपनी बोली भाषा रीति रिवाज परंपराओं पर नहीं चल रहा है, उनका आरक्षण समाप्त किया जा रहा है, संविधान में उल्लेखित है, कि आरक्षण रीति रिवाज पंरपराओं और मुख्य धारा से दूर पिछड़ेपन के आरक्षण दिया जा रहा है, इसलिये कल अगर आपका आरक्षण समाप्त होता है, तो उसके जिम्मेदार भी आप ही लोग होंगे क्योकि आप लोग अपनी पंरपराओं रीति रिवाज बोली भाषा को छोड़ते जा रहै हो। 

संतोष मार्को एंव राजेश परस्ते ने अपने उदबोधन मे कहा कि समाज के साथ शोषण अत्याचार हो रहा है, लेकिन उसका प्रतिकार हमारे समाज के प्रतिनिधि नहीं करते, वे समाज का इंतजार करते है, कि समाज उस मुददे को उठाये तब हम उसका प्रतिनिधित्व करें, इसके कारण यह समाज पीछे है, प्रतिनिधित्व करने वाले लोग समाज को वोट बैंक समझते है, समाज को ऐसे लोगो पर भी ध्यान देना चाहिये। डिण्डौरी विधायक ओमकार मरकाम ने कहा कि हम सभी को मिलजुल कर काम करने की जरूरत है, सामाजिक संगठन के माध्यम से हम समाज में हो रहै शोषण के विरूद्ध एक साथ खड़े हो समाज को राजनैतिक मंच ना बनायें समाज मे सेवा भाव से काम करे, तभी समाज का विकास हो सकता है आरक्षण को केन्द्र सरकार के द्वारा संशोधन किया जा रहा है, इसके लिये हमें हमेशा सजग रहना है। डा. नन्हें सिह ठाकुर ने कहा कि आरक्षण हमारा संवैधानिक अधिकार है, इसके लिये हम सभी को मिलजुल संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना है। हमारे संवैधानिक अधिकारों को कौन हमसे अलग करने का प्रयास कर रहा है, यह हम देख रहै है, और समझ रहै है, हम इनका मुंहतोड़ जवाब देंने के लिये तैयार रहै। 


राम रहीम का पुतला दहन
रानी अवंतिबाई चैराहे पर रामरहीम का पुतला दहन समाज के लोगो ने किया अपना रोष प्रगट करते हुये युवाओं ने पुतले को जूते चप्पलों से मारा ।

आजक थाना में राम रहीम एंव केन्द्रिय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के खिलाफ शिकायत 
डिण्डौरी आजक थाना में समस्त समाज सेवी एंव बुद्धीजिवियों ने पंहुच कर उनके खिलाफ अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार अधिनियम 1989 के तहत प्रकरण पंजीबद्ध कर कार्यवाही करने के लिये शिकायत पत्र दिया।
सभा के अंत में ज्ञापन सौंपा गया 

10 सूत्रीय मांग ज्ञापन पत्र में अंकित कर समाज के सभी बुद्धीजिवि अतिथिगणों ने जिला प्रशासन को महामहिम राष्ट्रपति एंव माननीय प्रधानमंत्री के नाम तहसीलदार महोदय डिण्डौरी को ज्ञापन सौंपा गया तथा सभी उपस्थित समाज सेवियों का आभार  व्यक्त किया गया कार्यक्रम में मुख्य रूप से अध्यक्ष धरम सिह मसराम उपाध्यक्ष जी.एस.पूषाम,अमर सिंह परस्ते हेम सिंह पटटा, चरन सिंह परस्ते, डिण्डौरी विधायक ओमकार सिह मरकाम, डाॅ नन्हें सिह ठाकुर पूर्व विधायक, दुलीचंद उर्रेती पूर्व विधायक, गोपाल मरावी, राजेश परस्ते, श्रीमति नीतू तिलगाम, श्रीमति पुष्पा मरावी,रवितेकाम,पी.सी.सैयाम,पी.सी.उइके,पी.एस.साण्डया, गिरवर बालरे, शंकरशाह गोंड,घनश्याम मरावी  कार्यकर्ताआंे की कार्यक्रम रैली एंव आमसभा का सफल संचालन हरी सिह मरावी ने किया। 


Friday, October 9, 2015

दुनिया का सबसे लंबा पर्व: 75 दिन चलता है बस्तर का दशहरा ,पर नही होता रावण दहन.

दुनिया का सबसे लंबा पर्व: 75 दिन चलता है बस्तर का दशहरा ,पर नही होता रावण दहन.

छत्तीसगढ़ का बस्तर दशहरा दुनिया में सबसे लंबे अवधि तक मनाया जाने वाला पर्व है। सहकार और समरसता की भावना के साथ 75 दिवसीय पर्व की शुरुआत हरेली अमावस्या से क्वांर माह तक चलता है। इसमें सभी वर्ग, समुदाय और विशेषत: जाति-जनजातियों का योगदान महत्वपूर्ण होता है। प्रत्येक बस्तरिया का माईजी के प्रति अगाध प्रेम व आस्था पर्व में झलकता है।
पर्व की शुरुआत हरेली अमावस्या को माचकोट जंगल से लाई गई लकड़ी (ठुरलू खोटला) पर पाटजात्रा रस्म के साथ होती है। इसके बाद बिरिंगपाल गांव के ग्रामीण सीरासार भवन में सरई पेड़ की टहनी को स्थापित कर डेरीगड़ाई रस्म पूरी करने के साथ विशाल रथ निर्माण के लिए जंगलों से लकड़ी शहर पहुंचाने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है। झारउमरगांव व बेड़ाउमरगांव के डेढ़-दो सौ ग्रामीण रथ निर्माण की जिम्मेदारी निभाते दस दिनों में पारंपरिक औजारों से विशाल रथ तैयार करते हैं। इसमें लगने वाले कील और लोहे की पट्टियां भी पारंपरिक रुप से स्थानीय लोहार सीरासार भवन में तैयार करता है।

काछनगादी पूजा

रथ निर्माण के बाद पितृमोक्ष अमावस्या के दिने काछनगादी पूजा विधान होती है। इसमें मिरगान जाति की बालिका को काछनदेवी की सवारी आती है जो बेल कांटों से तैयार झूले पर बैठकर रथ परिचालन व पर्व की अनुमति देती है। इसके दूसरे दिन ग्राम आमाबाल के हलबा समुदाय का एक युवक सीरासार में 9 दिनों की निराहार योग साधना में बैठकर लोक कल्याण की कामना करता है।

यह जनजातियों (आदिवासियो) में योग साधना की सहज ज्ञान और माईजी के प्रति आस्था को प्रकट करता है। इस दौरान प्रतिदिन शाम को माईजी के छत्र को विराजित कर दंतेश्वरी मंदिर, सीरासार चौक, जयस्तंभ चौक व मिताली चौक होते रथ परिक्रमा की जाती है। रथ में माईजी के छत्र को चढ़ाने और उतारने के दौरान बकायदा सशस्त्र सलामी दी जाती है। रथ परिचालन में आधुनिक तकनीक और यंत्रों का उपयोग नहीं होता। पेड़ों की छाल से तैयार रस्सी से ग्रामीण रथ खींचते हैं। इस रस्सी को लाने की जिम्मेदारी पोटानार क्षेत्र के ग्रामीणों पर है।

जनजातिय प्रजातांत्रिक व्‍यवस्‍था का उदाहरण

बस्तर दशहरा में संभाग के अलावा धमतरी और महासमुंद-रायपुर जिले के देवी-देवताओं को भी आमंत्रित किया जाता है। यह पर्व में सहकार के साथ एकता का भी प्रतीक है। वहीं पर्व के अंतिम पड़ाव में मुरिया दरबार लगता है। जहां मांझी-मुखिया और ग्रामीणों की समस्याएं सुना और निराकरण किया जाता है। मुरिया दरबार जनजातिय परिवेश में भी प्रजातांत्रिक व्यवस्था का सबसे अच्छा उदाहरण है।
मुरिया दरबार में पहले समस्याओं का समाधान राजपरिवार करता था अब यह जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारी निभाते हैं। इसके बाद सभी परगना और गांव के देवी-देवताओं के लाट, बैरक, डोली की विदाई कुटुंबजात्रा के साथ ससम्मान की जाती है। दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी माई की डोली व छत्र को दूसरे दिन नजराने व सम्मान के साथ विदा किया जाता है।

काछनदेवी और दशहरा

बस्तर दशहरा में काछन पूजा अनिवार्य रस्म है। पर्व व रथपरिचालन की अनुमति काछनदेवी देती है। काछनगुड़ी क्षेत्र में माहरा समुदाय के लोग रहते थे। तब यहां हिंसक पशुओं का आतंक था और इनसे सुरक्षा के लिए कबीले का मुखिया जगतू माहरा तात्कालिक नरेश दलपत देव से भेंटकर जंगली पशुओं से अभयदान मांगा। शिकार प्रेमी राजा इस इलाके में पहुंचे लोगों को राहत दी वहीं यहां की आबोहवा से प्रभावित होकर बस्तर की बजाए जगतुगुड़ा को राजधानी बनाया। इससे माहरा कबिला जहां राजभक्त हो गया वहीं राजा ने कबिले की ईष्टदेवी काछनदेवी से अश्विन अमावस्या पर आशीर्वाद व अनुमति लेकर दशहरा उत्सव प्रारंभ किया। तब से यह प्रथा चली आ रही है।

गड्ढे में 9 दिनों की साधना

बस्तर दशहरा निर्विघ्न संपन्न कराने सहित अंचल की सुख-समृद्धि की कामना के साथ 9 दिनों की साधना में ग्राम बड़े आमाबाल के योग पुरुष रहता है। मान्यताओं के अनुसार बरसों पहले आमाबाल परगना की हलबा जाति का कोई युवक निर्विघ्न दशहरा मनाने और लोगों को शुभकामना देने के लिए राजमहल के समीप योग साधना में बैठ गया था। तब से यह प्रथा चली आ रही है। जिसे राजपरिवार व प्रशासन की ओर से सम्मान स्वरूप भेंट दिया जाता है। वहीं 9 दिनों तक परिवार के सदस्यों के लिए भोजन की व्यवस्था की जाती है। हलबा समाज के सदस्य बताते हैं कि समुदाय के सदस्य वर्ष 1414 से दशहरा की सफलता और लोगों की सुख-समृद्धि की कामना के लिए जोगी बनता आ रहा है।

बस्तर दशहरा के विशेष आकर्षण की एक झलक

मावली परघाव
पर्व में शामिल होने दंतेवाड़ा से माईजी के छत्र-डोली अश्विन नवमी को शहर पहुंचती पहुंचती है। जियाडेरा में विश्राम के बाद शाम को कुटरुबाड़ा के समक्ष भव्यता के साथ स्वागत किया जाता है। आस्था और भक्तिभाव से पूर्ण इस दृश्य को देखने स्थानीय के साथ विदेशी पर्यटक भी घंटों इंतजार करते हैं।

सात्विक बलि

नवरात्र के चलते पर्व के दौरान दंतेश्वरी मंदिर,और कुछ स्थान विशेष पर बकरे की जगह रखिया कुम्हड़ा की बलि दी जाती है।

अर्धरात्रि को बलि

पर्व के दौरान हर रस्म में बकरा, मछली व अन्य पशु-पक्षियों की बलि दी जाती है। लेकिन अश्विन अष्टमी को निशाजात्रा रस्म में दर्जनों बकरों की बलि आधी रात को दी जाती है। इसमें पुजारी, भक्तों के साथ राजपरिवार सदस्यों की मौजूदगी होती है। निशाजात्रा का दशहरा के दौरान विशेष महत्व है। इस परंपरा को कैमरे में कैद करने विदेशी पर्यटकों में भी उत्साह होता है।

नहीं होता रावण वध

दशहरा के मौके पर भारत कुछ अधिकांश भाग में जहां रावण वध किया जाता है वहीं बस्तर में यह परंपरा नहीं है। दशहरा के मौके पर पूर्व कलेक्टर प्रवीरकृष्ण ने लालबाग मैदान पर रावण वध कार्यक्रम की शुरुआत करवाई थी, लेकिन यह एक ही बार हुआ। बस्तर के ग्रामीण अंचलों में रावण वध नहीं किया जाता है।

पर्व में कब क्या

पाटजात्रा पूजा विधान
डेरीगड़ाई रस्म
काछनगादी पूजा
कलश स्थापना व जोगी बिठाई
नवरात्रि पूजा व रथ परिक्रमा
निशा जात्रा पूजा
कुंवारी पूजा, जोगी उठाई और रात में मावली परघाव
भीतर रैनी व रथ परिक्रमा
कुम्हड़ाकोट में नया खानी व शाम को रथ वापसी
काछन जात्रा पूजा और मुरिया दरबार
कुटुंब जात्रा व देवी-देवताओं की विदाई
दंतेवाड़ा की माईजी की डोली व छत्र की विदाई.

पहादीं पारी कुपार लिगों पेन के 18 वाद्ययंत्रो में शामिल.....

लिंगो के 18 वाद्ययंत्रो में शामिल. ....दुर्लभ वाद्ययंत्र "टोयली" बजाते हुए.....चंदेली मारी बस्तर छतीसगढ़

लिंगो पेन के 18 वाद्ययंत्रो में से एक "चेहरेगं" के अदभुत संगीत तरंगो के द्वारा मृत्यु संस्कार में "कुण्डा"
के माध्यम से "आत्मा" को "पेन"(देव) बनाया जाता है..........टोण्डा. .मण्डा. ..कुण्डा. ... संस्कार कि यह व्यवस्था स्वर्ग/नरक के घनचक्कर से आदिवासीयो को बचाये रखी है. 

कोया पुनेम के पवित्रतम "को" से "कोटोड़का" नामक यन्त्र के संगीत तरंगो द्वारा जंगली पशुओं को नियंत्रित कर विश्व में पशुपालन का प्रथम विकास.....लया लयोर को नृत्य के दौरान केन्द्रित करने वाला उपकरण...महान वैज्ञानिक व संगीतज्ञ पहादीं पारी कुपार लिगों पेन के 18 वाद्ययंत्रो में शामिल..... 

पूनांग पंडुम(नवा खाई त्योहार) ना सेवा जोहार! ......गोण्डवाना के गोडूम डिपा(मरहान भूमि ) में उत्पन्न प्रथम अन्न ...को अपने पूर्वजों को अर्पित कर ....कृर्षि विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले महान बैल के सम्मान में....टीबी जैसे संक्रामक बीमारियों से सामुहिक रोकथाम हेतु कोरिया के पत्तों में भोग ग्रहण करने......मलेरिया जागरूकता महाअभियान "लूले डयाना " कर गोण्डवाना को सुरक्षित रखने...महान मौसम विज्ञानी पेन भिमा लिगों के सम्मान में दूनिया के सबसे बड़े हाई हील जूते पवित्र गोड़ोन्दि का विसर्जन करने....अण्डे के द्वारा ब्रह्मांड के रहस्यों से पवित्र "गोटूल" छात्रों को शिक्षा देने ....गोण्डीयन जन को स्वर्ग नरक कि कोरी कल्पना से परे "पेन अमरत्व" का अहसास करने........और नीचे मेरे चित्र के पवित्रतम गोण्डवाना के पवित्र गोन्डान्ड़ी(हुल्कि मादंरी) के प्रयोग से हम सब को कोया पुनेम के संगीतमय तरंगों से एकजुट रखने के लिए. 


Thursday, October 8, 2015

महाकुंभ एक राजनैतिक कुभ

(यह पोस्ट मण्डला महाकुंभ के समय प्रेषित किया गया था, लेकिन पोस्ट यूनिकोड फोन्ट में कन्वर्ट नहीं हुआ था इसलिये इस पोस्ट को लोग पढ़ नहीं पाये क्षमा चाहता हॅू, पुनः यूनीकोड में पोस्ट प्रेषित है)मण्डला

महाकुंभ एक राजनैतिक कुभ है



आदिवासी उपयोजना की राशि से कुंभ में हो रहा निर्माण कार्य
      डिण्डौरी, गोंडवाना महासभा की आवश्यक बैठक आज डिण्डौरी में आयोजित की गई जिसमें जबलपुर संभाग तथा शहडोल संभाग के पदाधिकारीगण उपस्थित हुये बैठक में गोंडवाना महासभा के संस्थापक सदस्य श्री अमान सिंह पोर्ते तथा संभागीय सचिव श्री हरी सिंह मरावी ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी और आर.एस.एस द्वारा मण्डला महिष्मति नगरी में किये जा रहै सामाजिक कुंभ में केन्द्र सरकार द्वारा जारी आदिवासी उपयोजना की राशि का दुरूपयोग किया जा रहा है, और आदिवासी आम जनता को इसकी भनक भी नहीं है। मध्यप्रदेश के मूलनिवासीयों को आगाह करते हुये कहा कि यह बहुत बड़ा षणयंत्र है। आदिवासीयों के विकास की राशि से हिन्दुत्व को बढ़ावा देने के लिये आदिवासी जनता को हिन्दुत्व की और आकर्षित करने के लिये कुंभ का आयोजन किया जा रहा है। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि आदिवासी उपयोजना की राशि से ही यह कार्य किया जा रहा है और इस कार्य में भाजपा,वनवासी कल्याण सेवा संघ आदि में जो आदिवासी नेता जनप्रतिनिधिगण पदाधिकारी हैं वे ही लोग इस कार्य में लगे हैं,ऐसे आदिवासीयों को गोंडवाना महासभा ने समाज के दलाल का नाम दिया है, डिण्डौरी और मण्डला में जो आदिवासी कुंभ के प्रचार प्रसार तथ धन इक्टठा करने के कार्य में लगे हुये है, उन्हें जरा सा भी हिन्दुत्व से लगाव है तो मैं उनसे कहना चाहता हॅू कि वे आने वाले समय में आदिवासी जाति प्रमाण पत्र का उपयोग न करें। क्योंकि यह आरक्षण आदिवासियों के लिये है,वे आदिवासी जिनकी परम्परा रीतिरिवाज धर्म ही अलग है,और इनकी परम्परा हिन्दुओं से पृथक है, इस बात को भारत का सर्वोच्च न्यायालय कहता है। गोंडवाना महासभा ने आरोप लगाया है कि हम हिन्दुओं के किसी भी धार्मिक कार्यक्रम का विरोध नहीं करते लेकिन मण्डला जिला पांचवी अनुसूचित के तहत अधिसूचित क्षेत्र है, तो स्वाभाविक है कि यंह आदिवासी बाहुल्य है और इनकी अपनी संस्कृति,साहित्य,धार्मिक तथा रीतिरिवाज परम्परायें है, और इसी आधार पर इन्हें आदिवासी कहते हैं तथा इसी आधार पर ही इनका आरक्षण दिया गया हैं। इनके धर्म में कहीं भी कुंभ का उल्लेख नहीं है। और न हो सकता है।
कुंभ आयोजन समीति के मीडिया प्रभारी संजय दुबे की विज्ञप्ति का खंडन
       श्री मरावी ने आरोप लगाया कि संजय दुबे ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि जो लोग माॅ नर्मदा सामाजिक कुंभ का विरोध कर रहै हैं, वे धर्मान्तरण के कार्यो में लिप्त हैं, उनका खण्डन करते हुये कहा कि गोंडवाना के लोग हिन्दू नहीं है इस बात से शायद संजय दुबे जी अवगत नहीं है, उन्हें मालुम होना चाहिये कि हिन्दु कोड बिल के तहत जो चार अधिनियम ‘‘ दि हिन्दु मैरेज एण्ड डिव्होर्स एक्ट 1955, दि हिन्दु सक्षेसन एक्ट 1956, दि हिन्दु एडाप्षन मेंटेनेन्स एक्ट 1956 और दि हिन्दु माइनारिटी एण्ड गार्जियनषिप एक्ट 1956’’, लोकसभा में पारित किये गये है, उनकी धारा 2(2) के अनुसार अनुसूचित जनजातियों के किसी भी सदस्य को हिन्दु कानून लागू नहीं होता। इसके बावजूद भी जनजातियों को ऐन केन प्रकारेण हिन्दुकरण का जामा पहनाने की चेष्ठा की जाती है। यही वजह है कि भारत सरकार द्वारा प्रति दस वर्ष में जो जनगणना की जाती है उसमें जनजाति गणों के धर्म को निर्देषित करने के लिये पृथक कोड की व्यवस्था जानबूझ कर नहीं की जाती है, ताकि हिन्दुओं की संख्या में वृद्धि होती रहै।
       र्गोंड जनजाति हिन्दु नहीं है वह प्राकृतिक धर्म को मानने वाली है प्रकृति के अनुसार ही वे धार्मिक सांस्कृतिक जीवन परंपरा का निर्वाहन करते है।
     इस संदर्भ में माननीय न्यायमूर्ति एस.पी.सेन द्वारा दिया गया फैसला ( क्र. एस.ए./100/66/15-1-1971, एम.पी.एल.जे. नोट 21 त्रिलोक सिंह विरूद्ध गुलाबसिया) द्वारा स्पष्ट किया गया है कि गोंड समुदाय के लोग हिन्दु नहीं है ( ळवदके ंतम दवज भ्पदकन ) उनकी अपनी प्रथा, परंपरा एंव रीतिरिवाज  है जिससे वे संचालित होते है। गोंडवाना के लोग प्रकृति के उपासक है और इनकी रीति नीति हिन्दू से पृथक है, इनकी शादी विवाह परम्पराओं तथा अन्य धार्मिक कार्यो में ब्राहमण वर्जित है। तथा समाज में भिक्षावृत्ति नहीं है कितना ही गरीब व्यक्ति क्यों न हो वह कभी भिक्षा नहीं मांगता मेहनत कर लेगा लेकिन भीख नहीं मांग सकता, वंही हिन्दू धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य में ब्राहम्ण ही पूजन करता है, और जो लोग मेहनत कस नहीं होते वे भीख मांगना शुरू कर देते है। उन्होने कहा कि इस देश में हिन्दू मुस्लिम,सिक्ख, ईसाई,बौद्ध,जैन तथा अन्य धर्मो के लोग निवास करते है और मुख्य बात यह है, कि मुस्लिम व्यक्ति मुस्लिम से, सिक्ख व्यक्ति सिक्ख से, जैन व्यक्ति जैन से, बौद्ध व्यक्ति बौद्ध से आपस में शादी संबध करता है रिश्ते नाते निभाते है एक साथ धार्मिक स्थान में बैठ कर पूजन अर्चन करते है, लेकिन क्या हिन्दू हिन्दू से आपस में संबध रखता है नंही ।जब आदिवासियों के साथ आज भी अन्याय अत्याचार शोषण ऊंच नीच भेदभाव रखा जा रहा है, इसका उदाहरण यह है कि अभी वर्तमान में विगत  जनवरी के प्रथम सप्ताह 2011 में सर्वोच्च न्यायालय का वह फैंसला है,जिसे महाराष्ट्र के तालुका पुलिस स्टेशन के  नंदाबाई भील के पक्ष में सुनाया गया है,फैसले में स्पष्ट कहा गया है कि  ‘‘यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि आज आदिवासी, जो कि संभवतः भारत के मूलनिवासियों के वंशज है,अब देश की कुल आबादी का 8 प्रतिशत ही बचे है,वे एक तरफ गरीबी, निरक्षरता, बेरोजगारी, बीमारियों ओर भूमिहीनता से ग्रसित है, वंही दूसरी तरफ भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या, जो कि विभिन्न अप्रवासी जातियों का वंशज है, उनके साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार करती है’’  इसी क्रम में इतिहास में आदिवासीयों के साथ हुये अन्याय का जिक्र करते हुये लिखा गया है कि इसका सर्वाधिक ख्यात उदाहरण महाभारत के आदिपर्व में उल्लेखित एकलव्य प्रसंग है. एकलव्य धनुविद्या सीखना चाहता था, लेकिन द्रोणाचार्य ने उसे सिखाने से मना कर दिया क्योंकि वह नीची जाति में पैदा हुआ था. तब एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाई और धर्नुविद्याा का अभ्यास शुरू किया. वह शायद द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया, इसलिये द्रोणाचार्य ने गुरू दक्षिणा में उसका दाॅये हाथ का अंगूठा मांग लिया. एकलव्य ने अपने सरल स्वभाव के कारण वह दे दिया.’’ फैसले में आगे बिंदु क्रमांक 38 के तहत लिखा है ‘‘ यह द्रोणाचार्य की और से एक शर्मनाक कार्य था. जबकि उसने एकलव्य को सिखाया भी नहीं. फिर उसने किस आधार पर एकलव्य से गुरू दक्षिणा मांग ली और वह भी दांॅये हाथ का अंगूठा जिससे कि वह उसके शिष्य अर्जुन से श्रेष्ठ धर्नुधर न बन सके.?    
संजय दुबे ने अपनी विज्ञप्ति मेें गोंडवाना महासभा के विरोध को ईसाई मिशनरियों का विरोध कहा है, मरावी जी ने आरोप का खण्डन करते हुये कहा कि आदिवासी संगठन आजादी के बाद से ही ईसाई समाज को मिल रहै आदिवासी आरक्षण का विरोध कर रहीं है, तथा उन्होने कहा कि भाजपा.तथा कांग्रेस की सरकार आजादी के बाद से ही सत्ता में रही है,और प्रदेश में आज भी भाजपा ही है, इस संबध में अभी तक आपकी सरकार ने क्या कार्यवाही किया वे बतायें क्योकि आज भी आदिवासियों के हक अधिकार मे ंसबसे पहले ईसाई को लाभ मिल रहा है,ये शिक्षा में आगे रहते है, और यंहा के मूलनिवासी आदिवासी ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाते, जिसके कारण आज भी ये पिछड़े हैं। और ईसाई मिशनरियों से धर्मांतरण को लेकर संजय दुबे जी का विरोध है,तो गोंडवाना महासभा उनसे आग्रह करती है कि आपकी सरकार सत्ता में है आप ईसाई समाज को मिल रहै आदिवासी आरक्षण को समाप्त करें साथ ही ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासीयों का भी आरक्षण तत्काल समाप्त करने की कार्यवाही करे ंजिससे आदिवासी समाज को लाभ मिल सके कुंभ से आदिवासीयों को कोई लाभ नहीं मिलना। बल्कि आदिवासीयों के विकास की राशि इस कार्य में लगाई जा रही है जिससे आदिवासीयों का विकास और रूकेगा।
भाजपा पदाधिकारियों के बच्चे कंहा अध्ययन कर रहै है।
भाजपा के पदाधिकारियों कार्यकर्ताओं के द्वारा जो ईसाई मिशनरियों का विरोध किया जाता है वह मात्र दिखावा है या यूॅं कंहो तो गलत नहीं होगा कि ये लोग आम जनता को बरगलाने या भड़काने का कार्य करते हैं, जिससे लोगों को यह लगे कि हिन्दुओं को ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मतांरण किया जाता है, जबकि धर्मतांरण करने का काम भाजपा कर रहीं है, जब गोंड जाति को सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दू नहीं माना जिन्हें ये हिन्दू बनाने का प्रयास कर रहीं है, जबकि गोंड समाज अपनी धर्म व संस्कृति के साथ अपना बजूद बनाये व बचाये रखकर आज भी जीवन यापन कर रही है।
       जबकि भाजपा के पदाधिकारी जो लगातार ईसाई मिशनरी विरोधी अभियान चलाते हैं, जबकि इनके बच्चों की स्कूली शिक्षा व अन्य शिक्षा ईसाई मिशनरियों के ही स्कूलों में ग्रहण करते रहै व कर रहै हैं, इससे साफ जाहिर होता है कि इनके मुख पर मुखौटा लगा है जो आम जनता को भांवनाआंे मेें वशीभूत कर अपना उल्लू सीधा कर रहै है।

सरकार लगी कुंभ में कृषकों को पकड़ाया झुनझुना

गोंडवाना महासभा के संस्थापक सदस्य श्री अमान सिंह पोर्ते ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार कृषकों के हितैषि होने का ढि़ढ़ोरा पीटते नहीं थक रहीं है, किन्तु सरकार कृषकों के लिये क्या कर रहीं है, यह किसी से छिपा नहीं है। मध्यप्रदेश में कृषक लगातार आत्महत्याऐं कर रहै हैं, प्राकृतिक आपदा के चलते कृषकों की तैयार खड़ी फसल चैपट हो चुकी है, जिनके मुआवजे के लिये सरकार सिर्फ घोषणायें कर रहीं है, व मीडिया के माध्यम से यह बताने का प्रयास कर रही है, कि सरकार ने इतने रूपये जारी कर दिये हैं, व शेष राशि के लिये केन्द्र सरकार से मांग कर रहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने केन्द्र सरकार से सहायता राशि नहीं दिये जाने से छुब्ध होकर अनशन में बैठने तक की बात कह रहै है जिससे कृषको को यह लगे कि सरकार उनके हित में कार्य कर रही है। जबकि सच्चाई यह है कि सरकार भाजपा के पदाधिकारियों एंव स्वयं सेवक स्ंाघ को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दिलाने के लिये मण्डला में माॅ नर्मदा सामाजिक कुंभ का आयोजन करवाने जा रहीं है, जिसमें सरकार लगभग 200 करोड़ रूपये से अधिक सरकारी खजाने से खर्च कर रही है। यदि हिन्दू धर्म व शास्त्रों की बात की जाये तो आप लोगों ने भी नहीं सुना होगा कि माॅ नर्मदा में कुंभ का आयोजन कभी हुआ है, तो अचानक यह कुंभ किस तिथि व लग्न का कुंभ है जो मध्यप्रदेश सरकार आयोजन करवा रही है। सरकार यदि कृषकों के साथ होती तो कृषकोें को अब तक फसल का मुआवजा मिल चुका होता।